कुन्ती का त्याग
कुन्ती का त्याग पाँचों पाण्डवों को कुन्ती सहित जलाकर मार डालने के उद्देश्य से दुर्योधन ने वारणावत नामक स्थान में एक चपड़े का महल बनवाया और अन्धे राजा धृतराष्ट्र को समझा बुझाकर धृतराष्ट्र के द्वारा युधिष्ठिर को आज्ञा दिलवा दी कि' तुम लोग वहाँ जाकर कुछ दिन रहो और भाँति-भाँति से दान-पुण्य करते रहो । चौकड़ी दुर्योधन ने अपनी चाण्डाल-चौकड़ी से यह निश्चय से किया था कि पाण्डवों के उस चमड़े के महल को किसी दिन रात्रि के समय आग लगा दी जाए। धृतराष्ट को दुर्योधन कि इस बुरी नीयत का पता नहीं था, परंतु किसी तहर विदुर को पता लग गया और विदुर ने पाण्डवों के वहाँ से बच निकल ने लिये अन्दर-ही अन्दर एक सुरंग बनवा दी तथा सांकेतिक भाषा में युधिष्ठिर को सारा रहस्य तथा बच निकलने का उपाय समझा दिया। कुन्ती का धर्मप्रेम पाण्डव वहाँ से बच निकले और अपने आप को छुपाकर एक चक्रा नगरी में एक बाह्राण के घर जाकर रहने लगे। उस नगरी में वक नामक एक बलवान राक्षस रहता था। उसने ऐसा नियम बना रखा था कि नगर के प्रत्येक घर से रोज बारी-बारी...