वसु (निषाद)
वसु (निषाद)
वसु नामक एक निषाद का उल्लेख पुराणों में मिलता है, जो श्यामाकवन (साँवा के जंगल) की रक्षा करता था। वह साँवा के चावलों का भात बनाकर, उसमें मधु मिलाकर श्रीदेवी तथा भूदेवी सहित विष्णु को भोग लगाता था और प्रसाद पाता था। चित्रवती नाम की पत्नी से इसका 'वीर' नामक पुत्र था, जिसके कारण निषाद वसु को भगवान विष्णु का दर्शन हुआ था।[1][2
भगवान का भक्त
पूर्व काल में वेंकटाचल (दक्षिण भारत) पर एक निषादरहता था। उसका नाम था- 'वसु'। वह भगवान का बड़ा भक्त था। प्रतिदिन स्वामिपुष्करिणी में स्नान करके श्रीनिवास की पूजा करता और श्यामाक (सावाँ) के भात में मधु मिलाकर वही भूदेवियों सहित उन्हें भोग के लिये निवेदन करता था। भगवान के उस प्रसाद को ही वह पत्नी के साथ स्वयं पाता था। यही उसका नित्य का नियम था। भगवान श्रीनिवास उसे प्रत्यक्ष दर्शन देते और उससे वार्तालाप करते थे। उसके और भगवान के बीच में योगमाया का पर्दा नहीं रह गया था। उस पर्वत के एक भाग में सावाँ का जंगल था। वसु उसकी सदा रखवाली किया करता था, इसलिये कि उसी का चावल उसके प्राणाधार प्रभु के भोग में काम आता था। वसु की पत्नी का नाम 'चित्रवती' था। वह बड़ी पतिव्रता थी। दोनों भगवान की आराधना में संलग्न रहकर उनके सान्निध्य का दिव्य सुख लूट रहे थे।[3]
पुत्र की प्राप्ति
कुछ काल के बाद चित्रवती के गर्भ से एक सुन्दर बालक उत्पन्न हुआ। वसु ने उसका नाम 'वीर' रखा। वीर यथानाम-तथागुणः था। उसके मन पर शैशव काल से ही माता-पिताके भगवच्चिन्तन का गहरा प्रभाव पड़ने लगा। जब वह कुछ बड़ा हुआ, तब प्रत्येक कार्य में पिता का हाथ बँटाने लगा। उसके अन्तःकरण में भगवान के प्रति अनन्य भक्ति का भाव भी जग चुका था।
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