त्रिहारिणी
त्रिहारिणी
इंद्रसावर्णी कट्टर वैष्णव थे, किन्तु उन्हीं के पुत्र का नाम वृषध्वज था, जो कि कट्टर शैव था। शिव उसे अपने पुत्रों से भी अधिक प्यार करते थे। उसके विष्णुभक्त न होने के कारण रुष्ट होकर सूर्य ने आजीवन भ्रष्टश्री होने का शापदिया।
शिव जी का क्रोध
शिव ने जाना तो त्रिशूल लेकर सूर्य के पीछे गए। सूर्य कश्यप को साथ लेकर नारायण की शरण में बैकुंठधाम पहुँचे। नारायण ने उसे निर्भय होकर अपने घर जाने को कहा, क्योंकि शिव भी उनके भक्तों में से हैं। उसी समय शिव ने वहाँ पहुँचकर नारायण को प्रणाम किया तथा सूर्य ने चंद्रशेखर को प्रणाम किया। नारायण ने शिव के क्रोध का कारण जानकर कहा, "बैकुंठ में आये आधी घड़ी होने पर भी मृत्युलोक के इक्कीस युग बीत चुके हैं। वृषध्वज कालवश लोकांतर प्राप्त कर चुका है। उसके दो पुत्र रथध्वज और धर्मध्वज भी हतश्री हैं तथा शिवभक्त हैं। वे लक्ष्मी की उपासना कर रहे हैं। लक्ष्मी आंशिक रूप से उनकी पत्नियों में अवतरित होंगी, तब वे श्रीयुक्त होंगे।" यह सुनकर शिव तपास्या करने चले गये। कुछ समय उपरान्त उनके कुशध्वज तथा धर्मध्वज नामक दो पुत्र हुए। कुशध्वज की पत्नी मालावती ने कमला के अंश से एक कन्या को जन्म दिया। उसने जन्म लेते ही वेदपाठ आरम्भ कर दिया। अत: वेदवती कहलाई तथा स्नान करते ही तप करने के लिए वन में जाने की इच्छा प्रकट की। अत्यन्त कठिन तपस्या करने पर भी उसका शरीर क्षीण नहीं हुआ। एक दिन उसे भविष्याणी सुनाई पड़ी की श्रीहरि स्वयं उसके पति होंगे।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ दे. सीता बा. रा.। उस कथा में जो अंतर है, वह निम्नलिखित है।
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