ऋषभदेव का त्याग राजा प्रियवत के पौत्र नाभि की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए बड़ा जप-तप किया और बड़ी दान-दक्षिणा भी दी, किंतु फिर भी उन्हें संतान प्राप्ति नहीं हुई। इस कारण वे बड़े दुखी और निराश हुए। नाभि ने बड़े-बड़े ॠषियों और मुनियों से परामर्श किया। वे चाहते थे कि दिव्य पुरुष की भांति ही उनके घर में पुत्र उत्पन्न हो। ॠषियों ने उन्हें यज्ञ द्वारा दिव्य पुरुष के आह्वान की सलाह दी। नाभि ने यज्ञ का आयोजन किया। बड़े-बड़े ॠषि और मुनि एकत्रित हुए। यज्ञ होने लगा। मन्त्रों और आहुतियों के साथ दिव्य पुरुष का आह्वान किया जाने लगा। दिव्य पुरुष प्रसन्न होकर प्रकट हुए। ॠषियों ने उनकी प्रार्थना करते हुए कहा,'प्रभो! हम सब आपके दास हैं, आप हमारे स्वामी हैं। हम पर कृपा कीजिए। हमारी रक्षा कीजिए और हमारी मनोभिलाषाओं को पूर्ण करके हमारे जीवन को सार्थक बनाइए। दीनबंधु, आप जगत् में जो कुछ होता है, आप ही की इच्छा से होता है। हमारे राजा नाभि आपके ही समान पुत्र चाहते हैं। उन पर दया कीजिए, उनकी मनोकामना पूर्ण कीजिए।' ॠषियों की प्रार्थना से दिव्य पुरुष प्रसन...
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