पुरंजन

पुरंजन  

पुरंजन एक वीर राजा और दूरदृष्टा व्यक्ति था। उसके मित्र अविज्ञात ने पुरंजन को सदा अच्छे मार्ग पर चलने का उपदेश दिया था, किंतु पुरंजन ने अपने मित्र को भुला दिया। वह एक अद्वितीय सुन्दरी के प्रेम जाल में फँस गया और गन्धर्वों द्वारा परास्त होकर बन्दी बना लिया गया। अगले जन्म में पुरंजन का जन्म एक राजकन्या के रूप में विदर्भराज के यहाँ हुआ।

कथा

अत्यन्त भोग-विलास आदमी को पतन के गर्त में ले जाते हैं। राजा पुरंजन योद्धा और दूरदृष्टा होते हुए भी भोग के चक्कर में अनेक कष्टों का भागी बना। उसके पूर्व जन्म के मित्र अविज्ञात ने उसे ज्ञान-मार्ग पर चलने के लिए उपदेश दिया था। लेकिन पुरंजन ने मित्र की बातों पर कोई ध्यान दिया और उसे भुला दिया। पुरंजन की कथा इस प्रकार है-वीर और यशस्वी राजा पुरंजन समस्त पृथ्वी पर अनेक आमोद-प्रमोद और विलासपूर्ण स्थान खोजते हुए हिमालयके दक्षिण में स्थित नवद्वारों के नगर में आया। नौद्वारों से सज्जित नगरी में एक अद्धितयी सुन्दरी से उसकी भेंट हुई और उसने उससे विवाह कर लिया।

गन्धर्वों का बन्धक

उस अपूर्व सुन्दरी के दस सेवक थे और प्रत्येक की सौ पत्नियाँ थीं। उसके उपवन की सुरक्षा पाँच फनधारी नागराज (शेषनाग) करता था। राजा उससे भी अधिक विशाल पूर्ण जीवन की आदी सुन्दरी के प्रेम जाल में फंसकर एक खिलौना मात्र रह गया। इस बात की ख़बर हिमालय वासी गन्धर्वों को लगी। चंडवेग नामक गन्धर्व ने यवनों को लेकर पुरंजन और उस अद्धितीय सुन्दरी के प्रासाद पर आक्रमण कर दिया। नगरी को आग के मुख में स्वाहा कर दिया गया। पुरंजन को गन्धर्व बांधकर अपने साथ ले गए। नागराज पाताल में चला गया। पुरंजन का इस दौरान काल की कन्या जरा से प्रेम प्रसंग चला था। इससे उसका बल, कान्ति और तेजस (वीर्य) नष्ट हो चुका था।

कन्या रूप में जन्म

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