गंगावतरण

गंगावतरण  

गंगावतरण
गंगावतरण
विवरणइक्ष्वाकु वंशीय राजा भगीरथ के कठिन प्रयासों और तपस्या से ही गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आयी थी, इसे ही 'गंगावतरण' कहते हैं।
विशेषभगीरथ सोरोंइलाहाबादबनारस और पटना होते हुए कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचे थे। यहाँ उनके पूर्वजों की साठ हज़ार राख की ढेरियाँ गंगा के पवित्र जल में डूब गई।
संबंधित लेखभगीरथशिवगंगा
अन्य जानकारीजब गंगा स्वर्ग से अपार वेग के साथ नीचे आईं तो शिव की जटाओं में क़ैद हो गईं। भगीरथ की विनती पर शिव ने गंगा को एक पतली धारा के रूप में जटाओं से निकाला।

गंगावतरण से तात्पर्य है कि 'गंगा का पृथ्वी पर अवतरण'। अयोध्या के इक्ष्वाकु वंशीय राजा भगीरथ के कठिन प्रयत्नों और घोर तपस्या से ही गंगा का पृथ्वी पर अवतरण सम्भव हुआ था। भगीरथ के पूर्वज राजा सगर के साठ हज़ार पुत्र कपिल मुनि के तेज से भस्म हो जाने के कारण अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए थे। उनके भस्म हो जाने से उस स्थान पर साठ हज़ार राख की ढेरियाँ लग गईं। अपने पूर्वजों की शांति के लिए ही भगीरथ ने घोर तप किया और गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में सफल हुए। पूर्वजों की भस्म के गंगा के पवित्र जल में डूबते ही वे सब शांति को प्राप्त हुए।

सगर का यज्ञ

भगवान श्रीराम से बहुत पहले इक्ष्वाकु वंश में सगर राजा हुए थे। वह बहुत वीर और साहसी थे। उनका राज्य जब बहुत दूर-दूर तक फैल गया तो उन्होंने एक बड़ा यज्ञ किया। पुराने समय में अश्वमेध यज्ञ होता था। इस यज्ञ में एक घोड़ा पूजा करके छोड़ दिया जाता था और घोड़े के पीछे राजा की सेना रहती थी। अगर किसी ने उस घोड़े को पकड लिया तो सेना युद्ध करके उसे छुड़ाती थी। जब घोड़ा चारों ओर घूमकर वापस आ जाता तो यज्ञ किया जाता था। यज्ञ के सम्पन्न होते ही वह राजा 'चक्रवर्ती' माना जाता था।

यज्ञ का घोड़ा

राजा सगर इसी प्रकार का यज्ञ कर रहे थे। भारतवर्ष के सारे राजा सगर को चक्रवर्ती मानते थे, पर राजा इन्द्र को सगर की प्रसिद्धि देखकर जलन होती थी। जब उसे मालूम हुआ कि सगर अश्वमेध यज्ञ कर रहे हैं तो वह चुपके से सगर द्वारा पूजा करके छोड़े हुए घोड़े को चुरा ले गया और बहुत दूर कपिल मुनि की गुफ़ा में जाकर बांध दिया। दूसरे दिन जब घोड़े को छोड़ने का समय पास आया तो पता चला कि अश्वशाला में घोड़ा नहीं ह। यज्ञ-भूमि में शोक छा गया। सेना ने खोजा पर घोड़ा न मिला तो महाराज के पास समाचार पहुंचा। महाराज ने सुना और सोच में पड़ गये। राजा सगर की बड़ी रानी का एक बेटा था, उनका नाम असमंजस था। असमंजस बालकों को परेशान करता था। सगर ने लोगों की पुकार सुनी और अपने बेटे असमंजस को देश से निकाल दिया। असमंजस का पुत्र था अंशुमान। राजा सगर की छोटी रानियों के बहुत से बेटे थे। कहा जाता है कि ये साठ हज़ार थे। सगर के ये पुत्र बहुत बलवान और चतुर थे और तरह-तरह की विद्याओं को जानते थे। जब सेना घोड़े का पता लगाकर हार गये तो महाराज ने अपने साठ हज़ार पुत्रों को बुलाया और कहा, ‘‘पुत्रो, चोर ने सूर्यवंश का अपमान किया है। तुम सब जाओ और घोड़े का पता लगाओ।’’ राजकुमारों ने घोड़े को खोजना शुरू किया। गांवों और कस्बों में खोजा, साधुओं के आश्रमों में गये, तपोवनों में गये और योगियों की गुफ़ाओं में पहुंचे। पर्वतों के बर्फीले सफ़ेद शिखरों पर पहुंचे, वन-वन घूमे, पर यज्ञ का घोड़ा उनको कहीं नहीं दिखाई दिया।


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