रैक्व की कथा
रैक्व की कथा
जनश्रुति नामक वैदिक काल में एक राजा थे । वे बड़े उदार हृदय तथा दानी थे । सारे राज्य में जगह-जगह पर उन्होंने धर्मशालाएं बनावा रखी थीं जहां यात्रियों को निःशुल्क ठहराने तथा भोजन कराने की व्यवस्था थी। वे चाहते थे कि अधिक से अधिक लोग उनका ही अन्न खाएं ताकि उन्हें इस सबका पुण्यफल प्राप्त हो। वह राजा और भी अनेक कार्य जनता की भलाई के लिए करता था जैसे चिकित्सालय खोले हुए थे, जहां पर निर्धन रोगियों का मुफ़्त इलाज होता था। यात्रियों की सुविधा के लिए सड़कें बनाई गई थीं, छायादार वृक्ष लगाए गए थे। जगह-जगह कुंए तथा बावड़ियों का प्रबंध पानी पीने के लिए किया गया था। इस प्रकार राजा प्रजा की भलाई के लिए निरंतर तत्पर रहता था। परन्तु इन सब कार्यों को करते हुए राजा को यह अभिमान भी हो गया था कि उसके समान प्रजा के हित का ध्यान रखने वाला और यहाँ कोई दूसरा राजा नहीं हो सकता।
एक दिन कुछ हंस रात्रि व्यतीत करने के लिए उड़ते हुए महल की छत पर आकर बैठ गए और आपस में वार्तालाप करने लगे। एक हंस व्यंग्य करते हुए अन्य हंसों से बोला, 'देखो इस जनश्रुति राजा ने इतने पुण्य के कार्य किए हैं कि उसका तेज़ चारों ओर बिजली के प्रकाश के समान फैल गया है। कहीं उससे छू मत जाना नहीं तो तुम सब भस्म हो जाओगे।' दूसरे हंस ने हंसते हुए उत्तर दिया, 'अरे तुम्हें कुछ मालूम नहीं है। इस राजा के राज्य में एक ब्रह्मज्ञानी रैक्व रहता है। उसके सामने इस राजा के सभी परोपकार के किए गए कार्य तुच्छ हैं। उसका ज्ञान इतना महान् है कि उसने परब्रह्म को जान लिया है। उसके सामने इस राजा के ही नहीं प्रजा के भी सभी धार्मिक अनुष्ठान फीके हैं बल्कि राजा-प्रजा जो कुछ भी अच्छे कार्य करते हैं, उन सबका फल ज्ञानी रैक्व को ही प्राप्त हो जाता है।' पूर्व हंस जो व्यंग्य कर रहा था, बोला, 'भाई ऐसा कैसा ज्ञान है जो राजा भी नहीं जानता। वह तो ऐसा समझता है कि उससे बढ़कर कोई दानी तथा ज्ञानवान है ही नहीं।' दूसरे हंस ने गम्भीरता से उत्तर दिया, 'जिस तत्त्व को ज्ञानी रैक्व जानते हैं, यदि उसको कोई दूसरा भी जान लेगा तो वह भी उन्हीं की भांति दूसरों के पुण्य कार्यों के फलों को प्राप्त कर लेगा।' राजा ने हंसों का यह सारा वार्तालाप सुना। रैक्व के विषय में जानने के लिए वह अत्यन्त व्यग्र हो उठा। किसी प्रकार सोते-जागते उसने रात्रि व्यतीत की तथा प्रातः नित्य कर्मों से निवृत्त होकर अपने मन्त्रियों को बुलाया और उन्हें आदेश दिया कि जहां कहीं भी रैक्व नाम के महात्मा हों, उन्हें ढूंढा जाए और उनके मिलते ही उसकी सूचना उन्हें दी जाए।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्वेताश्वरोपनिषद 2/15
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