अनन्त चतुर्दशी

अनन्त चतुर्दशी  

अनन्त चतुर्दशी
भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी
विवरण'अनन्त चतुर्दशी' के व्रत में अनन्त के रूप में भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा होती है। इसमें चौदह गाँठों वाला अनंत सूत्र पुरुषों द्वारा दाहिने तथा स्त्रियों द्वारा बायें हाथ में बाँधा जाता है।
अनुयायीहिन्दू तथा प्रवासी भारतीय हिन्दू
तिथिभाद्रपद मासशुक्ल पक्ष की चतुर्दशी
सम्बन्धित देवताविष्णु
संबंधित लेखविष्णुश्रीकृष्णयुधिष्ठिर
अन्य जानकारीअनन्त चतुर्दशी व्रत में धारण किये जाने वाले अनन्त सूत्र कपास या रेशम के धागे से बने होते हैं, जो कुंकमी रंग में रंगे जाते हैं। इस सूत्र में चौदह गाँठे होती हैं। अनन्त की चौदह गांठे चौदह लोकों की प्रतीत मानी गई हैं।

अनन्त चतुर्दशी (अंग्रेज़ीAnant Chaturdashi) का व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इस व्रत में अनन्त के रूप में भगवान श्रीहरि विष्णुकी पूजा होती है। अनन्त चतुर्दशी के दिन पुरुष दाहिने हाथ में तथा नारियाँ बाँये हाथ में अनन्त धारण करती हैं। अनन्त कपास या रेशम के धागे से बने होते हैं, जो कुंकमी रंग में रंगे जाते हैं तथा इनमें चौदह गाँठे होती हैं। इन्हीं धागों से अनन्त का निर्माण होता है। यह व्यक्तिगत पूजा है, इसका कोई सामाजिक या धार्मिक उत्सव नहीं होता। 'अग्नि पुराण'[1] में इसका विवरण है। चतुर्दशी को दर्भ से बनी श्रीहरि की प्रतिमा, जो कलश के जल में रखी होती है, की पूजा होती है। व्रती को धान के एक प्रस्थ (प्रसर) आटे से रोटियाँ (पूड़ी) बनानी होती हैं, जिनकी आधी वह ब्राह्मणको दे देता है और शेष अर्धांश स्वयं प्रयोग में लाता है।


पौराणिक उल्लेख

'अनन्त चतुर्दशी' का व्रत नदी-तट पर किया जाना चाहिए और वहाँ हरि की कथाएँ सुननी चाहिए। हरि से इस प्रकार की प्रार्थना की जाती है-

"हे वासुदेव, इस अनन्त संसार रूपी महासमुद्र में डूबे हुए लोगों की रक्षा करो तथा उन्हें अनन्त के रूप का ध्यान करने में संलग्न करो, अनन्त रूप वाले तुम्हें नमस्कार।"[2]

इस मन्त्र से हरि की पूजा करके तथा अपने हाथ के ऊपरी भाग में या गले में धागा बाँधकर या लटका कर[3] व्रती अनन्त व्रत करता है तथा प्रसन्न होता है। यदि हरि अनन्त हैं तो 14 गाँठें हरि द्वारा उत्पन्न 14 लोकों की द्योतक हैं। हेमाद्रि[4] में अनन्त व्रत का विवरण विशद रूप से आया है, उसमें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर से कही गयी कौण्डिन्य एवं उसकी स्त्री शीला की गाथा भी आयी है। कृष्ण का कथन है कि 'अनन्त' उनके रूपों का एक रूप है और वे काल हैं, जिसे अनन्त कहा जाता है। अनन्त व्रत चन्दन, धूप, पुष्प, नैवेद्य के उपचारों के साथ किया जाता है। इस व्रत के विषय में अन्य बातों के लिए।[5] ऐसा आया है कि यदि यह व्रत 14 वर्षों तक किया जाय तो व्रती विष्णु लोक की प्राप्ति कर सकता है।[6] इस व्रत के उपयुक्त एवं तिथि के विषय में कई मत प्रकाशित हो गये हैं। माधव[7] के अनुसार इस व्रत में मध्याह्न कर्मकाल नहीं है, किन्तु वह तिथि, जो सूर्योदय के समय तीन मुहर्तों तक अवस्थित रहती है, अनन्त व्रत के लिए सर्वोत्तम है। किन्तु निर्णयसिन्धु[8] ने इस मत का खण्डन किया है। आजकल अनन्त चतुर्दशी व्रत किया तो जाता है, किन्तु व्रतियों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1.  अग्नि पुराण 192।7-10
  2.  अग्नि पुराण 192।9
  3.  जिस पर मन्त्र पढ़ा गया हो
  4.  हेमाद्रि (व्रत, भाग 2, पृ. 26-36
  5.  देखिए वर्षकियाकौमुदी (पृ. 324-339), तिथितत्त्व (पृ. 123), कालनिर्णय (पृ. 279) वतार्क आदि
  6.  हेमाद्रि, व्रत, भाग 2, पृ. 35
  7.  कालनिर्णय 279
  8.  निर्णयसिन्धु, पृ. 142

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