ऐतरेय की कथा
ऐतरेय की कथा
संसार में सबसे प्राचीन ग्रन्थ हमारे वेद हैं । ये चार हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद । प्रत्येक वेदों को दो भागों में बंटा है । जिन्हें मन्त्र तथा ब्राह्मण कहा जाता है । जिन ग्रन्थों में मन्त्रों का संग्रह है वे सहिंता पुकारे गए । ब्राह्मण के तीन उप भाग हुए ब्राह्मण आरण्यक तथा उपनिषद । ब्राह्मण ग्रन्थ मनुष्यों के नित्य प्रति के कर्मकाण्ड से सम्बंधित है । इन्हीं में एक ऐतरेय ब्राह्मण कहलाता है जिसमें चालीस अध्याय हैं । इस ऐतरेय ब्राह्मण का आविर्भाव किस प्रकार से हुआ यह कथा उसी से संबंधित है ।
माण्डूकि नामक एक ऋषि थे उनकी पत्नी का नाम इतरा था । ये दोनों ही भगवान के भक्त थे तथा अत्यन्त पवित्र जीवन व्यतीत करते थे । दोनों ही एक दूसरे का ध्यान रखते तथा हंसी खुशी से समय काटते थे। दु:ख था तो केवल एक उनके कोई सन्तान नहीं थीं। सोच विचार के पश्चात् पुत्र प्राप्ति की इच्छा से दोनों ने कठिन तपस्या की तथा भगवान ने उनकी तपस्या तथा प्रार्थना से प्रसन्न होकर उनकी इच्छा को पूरा कर दिया। उनके घर में एक पुत्र का जन्म हुआ जो अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक था। यह बालक उनकी महान् तपस्या का फल था। यद्यपि बचपन से ही यह बालक आलौकिक एवं चमत्कारपूर्ण घटनाओं का जनक था लेकिन प्राय: चुप ही रहता था। काफ़ी दिनों के पश्चात् उसने बोलना प्रारम्भ किया। आश्चर्य की बात तो यह थी कि वह जब भी बोलता वासुदेव वासुदेव ही कहता। आठ वर्ष तक उसने वासुदेव शब्द के अतिरिक्त और कोई शब्द नहीं कहा। वह आखें बंद किए चुप बैठा ध्यान करता रहता। उसके चेहरे पर तेज़ बरसता तथा आंखों में तीव्र चमक थीं। आठवें वर्ष में बालक का यज्ञोपवीत संस्कार कराया गया तथा पिता ने उसे वेद पढाने का प्रयास किया लेकिन उसने कुछ भी नहीं पढा बस वासुदेव वासुदेव नाम का संकीर्तन करता रहता। पिता हताश हो गए और उस मूर्ख समझते हुए उसकी ओर ध्यान देना बंद कर दिया। परिणामरूवरूप उसकी माता की ओर से भी उन्होंने मुंह फेर लिया। कुछ दिनों पश्चात् माण्डूकि ऋषि ने दूसरा विवाह कर लिया जिससे उनके अनेक पुत्र हुए। बडे होकर ये सभी वेदों के तथा कर्मकाण्ड के महान् ज्ञाता हुए। चारों ओर उन्हीं की पूजा होती थी। बेचारी पूर्व पत्नी घर में ही उपेक्षित जीवन व्यतीत कर रही थी। उसके पुत्र ऐतरेय को इसका बिल्कुल ध्यान नहीं था। वह हर समय भगवान वासुदेव का नाम जपता रहता तथा एक मन्दिर में पडा रहता। एक दिन माँ को अति क्षोभ हुआ। वे मन्दिर में ही अपने पुत्र के पास पहुंची और उससे कहने लगीं तुम्हारे होने से मुझे क्या लाभ हुआ, तुम्हें तो कोई पूछता ही नहीं है, मुझे भी सभी घृणा की दष्टि से देखते हैं। बताओ ऐसे जीने से मेरा क्या लाभ है।
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